माँ से बढ़कर कुछ नहीं, क्या पैसा, क्या नाम

माँ से बढ़कर कुछ नहीं, क्या पैसा, क्या नाम चरण छुए और हो गये, तीरथ चारों धाम   इनकी बाँहों में बसा, स्वर्ग सरीखा गाँव बाबूजी इक पेड़ हैं, अम्मा जिसकी छाँव   हम तो सोए चैन से, पल-पल देखे ख़्वाब माँ कितना सोई जगी, इसका नहीं हिसाब   आज बहुत निर्धन हुआ, कल तक … Continue reading माँ से बढ़कर कुछ नहीं, क्या पैसा, क्या नाम